बात उस समय की है जब बीरबल पहली बार बादशाह अकबर से मिले थे। उस समय बीरबल का नाम महेश दास था। एक दिन जब बादशाह अकबर अपने राज्य के भ्रमण पर निकले तो अपने राज्य के एक व्यक्ति की चतुराई देखकर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई।
बादशाह अकबर ने उस शख्स को अपने दरबार में आने का न्यौता दिया और साथ ही बादशाह ने उसे पहचान के तौर पर अपनी एक अंगूठी भी दी। वह शख्स कोई और नहीं बल्कि महेश दास यानी बीरबर थे।
एक निश्चित दिन महेश दास ने सम्राट अकबर से मिलने के बारे में सोचा क्योंकि बादशाह ने उन्हें पुरस्कृत करने के लिए भी बुलाया था।
Akbar Birbal Story in Hindiअकबर-बीरबल की कहानी: आधा इनाम
जब महेश दास महल के द्वार पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि सम्राट से मिलने के लिए बहुत से लोग कतार में खड़े थे। उसी समय महेश दास ने यह भी देखा कि द्वारपाल उन सभी लोगों से कुछ न कुछ लेकर ही उन्हें अंदर जाने दे रहे थे।
जब महेश दास महल के द्वार पर पहुंचे तो द्वारपाल ने उन्हें रोक दिया, तब महेश दास ने द्वारपाल से कहा कि राजा ने उन्हें अपना इनाम लेने के लिए बुलाया है। तब द्वारपाल ने महेश दास से कुछ पहचान देने को कहा क्योंकि लोगों को शाही दरबार के अंदर जाने के लिए कुछ शाही प्रमाण दिखाना पड़ता था।
तो महेश दास ने बादशाह अकबर से प्राप्त अंगूठी द्वारपाल को दिखाई। अंगूठी देखकर द्वारपाल को लालच आ गया और वह सोचने लगा कि “जिस व्यक्ति के पास बादशाह अकबर की अंगूठी है, उसे कितना बड़ा इनाम मिलेगा।”
Akbar Birbal Story in Hindiअकबर-बीरबल की कहानी: आधा इनाम
द्वारपाल ने शाही दरबार में जाने से पहले महेश दास के सामने एक शर्त रखी कि उसे महल में प्रवेश करने की अनुमति तभी दी जाएगी जब वह उसे मिलने वाले इनाम का आधा हिस्सा द्वारपाल को देगा। अत: महेश दास कुछ देर सोचने के बाद द्वारपाल की शर्त मान गए और राजदरबार में चले गए।जैसे ही महेश दास सम्राट अकबर के सामने आए, सम्राट ने तुरंत महेश दास को पहचान लिया और पूरे दरबार में महेश दास की चतुराई की प्रशंसा भी की। राजा ने खुशी से महेश दास से कहा, “मांगो, तुम्हें क्या इनाम चाहिए।”
महेश दास ने बादशाह से पूछा कि “मैं जो भी मांगू, क्या आप मुझे वह इनाम दोगे?” बादशाह अकबर ने जवाब दिया कि तुम इनाम में जो चाहो बेफिक्र होकर मांग सकते हो, वह तुम्हें जरूर मिलेगा।तब महेश दास ने एक बड़ी अजीब सी मांग की कि “इनाम के तौर पर मुझे मेरी पीठ पर 100 कोड़े मारने की सजा दी जाए।” महेश दास की इस अजीबोगरीब मांग को सुनकर बादशाह अकबर और राज दरबार के तमाम लोग महेश दास की तरफ हैरानी से देखने लगते हैं।
Akbar Birbal Story in Hindiअकबर-बीरबल की कहानी: आधा इनाम
बादशाह अकबर हैरान रह गए और उन्होंने महेश दास से पूछा, “तुम ऐसा इनाम क्यों मांग रहे हैं? जिसका खामियाजा खुद तुम्हे ही भुगतना पड़ता हो।”
तब महेश दास ने द्वारपाल से हुई पूरी बातचीत बादशाह को विस्तार से बताई और इनाम का आधा हिस्सा यानी 50 कोड़े द्वारपाल को देने को कहा। इस बात से बादशाह को अपने द्वारपाल पर बहुत गुस्सा आया और उसने लालच की सजा के रूप में द्वारपाल को 100 कोड़े मारने की सजा दी।
सम्राट अकबर महेश दास की चतुराई को देखते हुए महेश दास को अपने शाही दरबार का मुख्य सलाहकार नियुक्त कर बादशाह ने महेश दास का नाम बदलकर बीरबल रख दिया। तभी से महेश दास बीरबल के नाम से प्रसिद्ध हुए।इस प्रकार अपनी चतुराई के बल पर बीरबल बादशाह अकबर के शासन काल में सदा के लिए राज्य के सलाहकार के रूप में रहने लगे।
इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती हैं?
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि हमें हमेशा खुद पर भरोसा रखना चाहिए और कोई भी काम ईमानदारी से करना चाहिए।