Story of the barber in the words of the tailor | दर्जी की जुबानी नाई की कहानी | अलिफ लैला

Story of the barber in the words of the tailor | दर्जी की जुबानी नाई की कहानी | अलिफ लैला

काशगर के बादशाह को लंगड़े आदमी की कहानी के बाद दर्जी ने नाई की कहानी सुनाना शुरू किया। उसने बताया कि सालों पहले खलीफा हारूं रशीद के काल में बगदाद के आसपास के जंगलों में दस डाकुओं का दबदबा हुआ करता था। ये डाकू वहां से आने-जाने वाले हर राहगीर को लूटकर उसका बेरहमी से कत्ल कर देते थे। डाकुओं के आतंक से खलीफा की प्रजा बेहद दुखी थी और वे इसकी कई बार खलीफा से शिकायत भी कर चुके थे।

अपनी प्रजा को परेशान देखकर खलीफा ने तुरंत शहर के कोतवाल को दरबार में बुलाया और जल्द से जल्द उन खूंखार डाकुओं को पकड़ कर अपने सामने लाने को कहा। यह आदेश देते हुए हारूं रशीद ने आगे कोतवाल से कहा कि अगर वह ऐसा नहीं कर पाया, तो उसे ही सूली पर चढ़ा दिया जाएगा। इतना कहकर खलीफा ने उन डाकुओं को पकड़कर लाने की एक तारीख तय कर दी। हारूं रशीद का आदेश सुनकर कोतवाल डर गया और अपने साथ कई सारे सैनिकों को लेकर उन जंगलों की ओर निकल पड़ा जहां डाकुओं का आतंक था।

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दर्जी ने आगे की कहानी सुनाते हुए बताया कि कोतवाल व सैनिकों ने दिन रात एक करके तय समय के अंदर ही सभी डाकुओं को पकड़ लिया। अब डाकुओं को राजा के समक्ष पेश करने के लिए उन्हें नाव से नदी को पार करके महल पहुंचना था, इसलिए सैनिकों ने डाकुओं को एक नाव पर बैठा दिया। इसी दौरान डाकुओं को आम लोग समझकर उसी नाव पर एक नाई भी नदी पार करने के लिए चढ़ गया।

नदी के उस पार नाव पहुंचते ही खलीफा के सिपाहियों ने डाकुओं के साथ नाई को भी डाकू समझ कर बंधक बना लिया। दर्जी ने बताया कि नाई को बोलने में काफी झिझक होती थी, क्योंकि वह अल्पभाषी था। इसी वजह से वह सिपाहियों को यह तक नहीं बता पाया कि वह डाकू नहीं है।

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सिपाही भी नाई को डाकुओं के साथ दरबार में ले गए और खलीफा के सामने हाजिर कर दिया। उन सभी डाकुओं को देखते ही खलीफा ने गुस्से में जल्लाद को सभी के सिर धड़ से अलग कर करने की आज्ञा दी। खलीफा का आदेश मिलते ही जल्लाद ने डाकुओं समेत नाई को भी घुटनों के बल बैठा दिया। देखते ही देखते जल्लाद ने सभी दस डाकुओं के सिर एक-एक करके काट दिए और अंत में नाई के पास पहुंच गया। जल्लाद ने जैसे ही नाई का सिर काटने के लिए तलवार उठाई, तो एकदम से खलीफा ने उसे रुकने का आदेश दे दिया।

जल्लाद को रोककर खलीफा ने नाई को ध्यान से देखा और तेज आवाज में उससे कहा, “अरे मूर्ख, तू तो डाकू नहीं लग रहा। फिर तू इन खूंखार डाकुओं के साथ कैसे आ मिला?” खलीफा की आवाज सुनकर नाई डर गया और फिर हिम्मत जुटाते हुए कहा, “हुजूर, मैं तो एक मामूली नाई हूं। नदी पार करते हुए मैं गलती से इन डाकुओं से भरी हुई नाव पर बैठ गया और सिपाहियों ने जब सबको बंधक बनाया, तो मैं सहम गया और कुछ नहीं कह पाया।”

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नाई का जवाब सुनकर खलीफा कुछ देर तक यूं ही उसे घूरते रहे और फिर ठहाके मारकर हंसने लगे। खलीफा ने उससे कहा, “मैंने आज तक तेरे जैसा मूर्ख इंसान नहीं देखा है। मौत तेरे सामने खड़ी है और तू कुछ बोल नहीं रहा है। अगर मैं जल्लाद को न रोकता तो तू आज बिना किसी अपराध के ही अपनी जान से हाथ धो बैठता।” नाई ने खलीफा से कहा, “हुजूर, मैं अपनी मूर्खता के लिए क्षमा चाहता हूं। मुझे कम बोलने की आदत है और लोगों को देखकर मैं डर के मारे कुछ भी नहीं बोल पाता हूं।”

फिर खलीफा ने नाई से उसके बारे में पूछा। खलीफा को अपने बारे में बताते हुए उसने कहा, “मालिक! हम सात भाई हैं, जिनमें से मैं सबसे छोटा हूं। मेरे अलावा सभी 6 भाई बातूनी हैं और केवल मैं ही हूं, जो बोलने से झिझकता हूं।”

नाई ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “मेरा सबसे बड़े भाई का कुबड़ निकला हुआ है, दूसरे भाई के मुंह में दांत नहीं है, तीसरे भाई को एक आंख से दिखाई नहीं देता, चौथा भाई दोनों आंखों से अंधा है, पांचवें भाई के कान कटे हुए हैं, छठे भाई के होठ कटे हुए हैं और सांतवां मैं हूं।”