भूतिया ढाबा की कहानी
एक सुनसान हाईवे पर, जहाँ दूर-दूर तक सिर्फ घना जंगल और अंधेरा पसरा रहता था, एक ढाबा था जिसे लोग “भूतिया ढाबा” कहते थे। यह ढाबा एक समय यात्रियों के लिए आराम करने और खाना खाने की मशहूर जगह हुआ करता था। लेकिन अब, यह वीरान और खौफनाक हो चुका था।
लोगों का कहना था कि रात के समय जो भी उस ढाबे पर रुकता, वह या तो गायब हो जाता या फिर सुबह तक पागल हो जाता। कई ड्राइवरों ने बताया कि उन्होंने वहाँ अजीब घटनाएँ देखी थीं—चाय और खाने की प्लेटें खुद-ब-खुद हवा में उठतीं, और एक डरावनी औरत का साया दिखता।
कहानी के अनुसार, यह ढाबा कभी रमेश नाम के आदमी का था, जो अपनी पत्नी, सीमा, के साथ इसे चलाता था। दोनों अपनी मेहनत और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। ढाबे पर हमेशा चहल-पहल रहती थी। लेकिन एक रात, कुछ लुटेरों ने ढाबे पर हमला कर दिया। उन्होंने रमेश और सीमा को लूटने की कोशिश की, लेकिन जब सीमा ने विरोध किया, तो उन्होंने उसे बेरहमी से मार दिया।
उसके बाद से, रमेश ने वह ढाबा छोड़ दिया और गाँव वापस चला गया। लेकिन सीमा की आत्मा उस ढाबे में ही रह गई। लोग कहते हैं कि वह अपने अधूरे सपने और अन्याय का बदला लेने के लिए वहाँ भटक रही है।
सालों बाद, ढाबे पर एक युवा ट्रक ड्राइवर, विजय, रुका। विजय को भूत-प्रेत की कहानियों पर यकीन नहीं था। वह रात को ढाबे में खाना बनाने लगा और वहीं सोने की तैयारी करने लगा। जैसे ही रात गहरी हुई, उसे अजीब-अजीब आवाजें सुनाई देने लगीं। अचानक, उसने देखा कि एक औरत सफेद साड़ी पहने उसके सामने खड़ी थी।
विजय डर के मारे कांपने लगा, लेकिन उसने हिम्मत जुटाई और उससे पूछा, “तुम कौन हो? और यहाँ क्या कर रही हो?”
औरत ने जवाब दिया, “मैं सीमा हूँ। मेरी आत्मा इस ढाबे से बंधी हुई है, क्योंकि मुझे मरने के बाद न्याय नहीं मिला।”
विजय ने सीमा की कहानी सुनकर गाँव जाकर यह बात रमेश और अन्य लोगों को बताई। रमेश ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, और लुटेरों की पहचान हुई। उन्हें उनके अपराध के लिए सजा मिली।
गाँव के पुजारियों ने ढाबे पर पूजा की और सीमा की आत्मा को शांति दिलाई।
उसके बाद से, “भूतिया ढाबा” फिर से एक सामान्य ढाबा बन गया। लोग वहाँ अब बिना किसी डर के रुकते हैं। सीमा की कहानी गाँव वालों को यह सिखाती है कि अन्याय के खिलाफ खड़ा होना जरूरी है और सच को कभी दबाया नहीं जा सकता।