गड़बड़ घोटाला
— एक कविता
बस्ती में मचा हल्ला, हुआ बड़ा घोटाला,
कौन करे ये गड़बड़, सबने सवाल उछाला।
बिल्ली खाए दूध का कटोरा, चूहे ने छीना पराठा,
कुत्ते ने सोचा सब चुप रहें, मैं करूं जमकर नाटक।
मुर्गी ने अंडे गिनती, बोली, “यह कैसा हाल?”
बंदर ने झपट ली टोपी, कर दिया सब कंगाल।
भैंस ने पानी में झूमा, बोली, “मुझसे पूछो बात,”
गाय ने कहा, “यह सब झूठ, है पक्का कोई घात।”
हाथी ने बजाई बिगुल, सबको किया इकट्ठा,
खरगोश ने कहा, “सुन लो भई, यह तो बड़ा अनोखा।
मक्खी ने सुनाई कहानी, जो सबने समझी आधी,
उल्लू ने हंसकर बोला, “सचाई की नहीं गवाही।”
मछली ने झील से झांका, बोली, “मेरा क्या दोष?”
तोते ने कहा, “सबके साथ है कोई न कोई रोष।”
बकरी ने मेमियाकर कहा, “सब हैं अपने-अपने चालू,”
मोर ने नाचकर जोड़ा, “मुझ पर मत करो सवालू।”
आखिर में हुआ ये फैसला, सबने माना एक बात,
“गड़बड़ हो या घोटाला, मिलकर सुलझाएं हर बात।
झगड़े और दोष न दें, चलें प्रेम की राह,
साथ रहें सब खुश होकर, यही है जीने का सच।”
यह कविता हल्के-फुल्के अंदाज़ में एक गड़बड़ के समाधान की बात करती है और मिलजुलकर जीने की सीख देती है।