चूहा / Chuha

चूहा / Chuha

चूहा कविता

चूहा: नन्हा शैतान

छोटा सा चूहा, दौड़े तेज़,
हर जगह करता अपनी भेद।
गुपचुप आता, गुपचुप जाता,
रसोई में हलचल मचाता।

रात का चोर

रात को चुपके से वो आए,
बिस्कुट, चावल सब ले जाए।
मां बोले, “कैसे पकड़े इसे?”
चूहा तो जाल से भी बच निकले।

चालाकी का मास्टर

छोटे से शरीर में बड़ा दिमाग,
हर कोने का रखता हिसाब।
भले दिखे मासूम सा,
पर घर को मचाए हलचल बड़ा।

चूहेदानी का खेल

पकड़ने को रखी दवाई और जाल,
पर चूहे का चलता दिमाग कमाल।
कभी-कभी तो सबको चकमा दे,
पर भूख उसे आखिर फंसा दे।

निष्कर्ष

चूहा है छोटा, पर करता बड़ा काम,
उससे बचने का रखना खास ध्यान।
मासूम सा दिखे, पर बड़ा शैतान,
चूहे की कहानी सबको दे आनंद।