सभा का खेल / Sabha Ka Khail

सभा का खेल

सभा का खेल कविता

सभा का खेल: बच्चों का संगम

बच्चों की टोली, सज गई सभा,
हंसी-ठिठोली, न कोई ग़म।
मंच पर सबने अपनी जगह बनाई,
खेल-खेल में बुद्धि दिखाई।

पहला खिलाड़ी बोला जोर से

“मैं राजा हूं, सबको दूं आदेश,
मेरी सभा में न हो कोई क्लेश।”
दूसरा बोला, “मैं हूं मंत्री,
सबका काम करू पूरी बारीकी।”

मजेदार भूमिका निभाई गई

किसी ने साधु का रूप अपनाया,
किसी ने चोर बनके सबको हंसाया।
नाटक में सबने जान लगाई,
सभा की धूम हर तरफ छाई।

सभ्यता का पाठ खेल-खेल में

सभा ने सिखाया, मिल-जुलकर रहो,
हर मतभेद को प्यार से कहो।
एकता में है शक्ति, यह सबने जाना,
खेल में जीवन का सार पहचाना।

निष्कर्ष

सभा का खेल, नटखट बच्चों का मेल,
मस्ती में सीखने का अनोखा खेल।
यह खेल न केवल हंसाता है,
बल्कि जीवन के मूल्य भी सिखाता है।