विक्रम बेताल की चौदहवीं कहानी:
चोर हंसने से पहले क्यों रोया?
प्राचीन समय की बात है। उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य अपनी सत्यनिष्ठा और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। एक दिन राजा विक्रमादित्य अपनी राजधानी में न्याय सभा लगा रहे थे। तभी एक साधु ने उनकी सभा में प्रवेश किया और राजा को चुनौती दी कि वे बेताल को पकड़कर उनके पास लाएँ। राजा ने यह चुनौती स्वीकार की।राजा विक्रमादित्य ने तांत्रिक साधु के आदेश पर एक श्मशान घाट में पेड़ पर लटके बेताल को पकड़ा। लेकिन बेताल ने अपनी शर्त रखी कि वह राजा को कहानियाँ सुनाएगा और यदि राजा ने बीच में जवाब दिया, तो वह फिर से पेड़ पर लौट जाएगा।
चौदहवीं कहानी इस प्रकार थी:
कहानी का प्रारंभ
एक नगर में एक कुशल और चालाक चोर रहता था। वह अपनी चतुराई से चोरी करता था और पकड़ा नहीं जाता था। लेकिन एक दिन, नगर में उसका सामना एक सुंदर युवती से हुआ। चोर को युवती से प्रेम हो गया और उसने उससे विवाह कर लिया।विवाह के बाद, चोर ने चोरी करना छोड़ दिया और अपनी पत्नी के साथ खुशहाल जीवन बिताने लगा। लेकिन कुछ समय बाद, उसकी पत्नी गंभीर रूप से बीमार हो गई। चोर ने उसका इलाज कराने के लिए अपना सारा धन खर्च कर दिया, लेकिन वह ठीक नहीं हुई। अंततः उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई।चोर अपनी पत्नी की मृत्यु से बहुत दुखी हुआ। उसे अपनी पत्नी की अंतिम इच्छा पूरी करनी थी, लेकिन उसके पास धन नहीं था।
इसलिए उसने एक बार फिर चोरी करने का निश्चय किया।चोर का निर्णयचोर एक व्यापारी के घर में घुसा और वहाँ से काफी धन चुराया। लेकिन भागने से पहले उसने देखा कि व्यापारी का परिवार सो रहा था। उनके चेहरे पर संतोष और खुशी देखकर चोर को अपनी पत्नी की याद आ गई, और वह फूट-फूटकर रोने लगा।लेकिन कुछ ही पलों बाद, उसने खुद को संभाला और जोर-जोर से हंसने लगा। इसके बाद वह चुपचाप धन लेकर चला गया।
बेताल का प्रश्न
इतनी कहानी सुनाने के बाद बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा, “राजा, बताओ, चोर पहले क्यों रोया और फिर अचानक क्यों हंसा?”बेताल ने कहा, “यदि तुमने उत्तर जानते हुए भी मौन धारण किया, तो तुम्हारा सिर फट जाएगा।”
राजा का उत्तर
राजा विक्रमादित्य ने उत्तर दिया, “चोर रोया क्योंकि उसे अपनी पत्नी की मृत्यु की याद आ गई और यह सोचकर दुख हुआ कि उसने अपनी पत्नी को खो दिया। लेकिन वह तुरंत हंसा क्योंकि उसे यह अहसास हुआ कि वह फिर से चोरी कर रहा है, और उसकी पत्नी की मृत्यु ने उसे अपनी पुरानी आदतों पर वापस ला दिया। उसने महसूस किया कि इंसान अपनी प्रवृत्ति से बंधा हुआ है।”राजा का उत्तर सुनते ही बेताल हंसते हुए फिर से पेड़ पर लौट गया। राजा विक्रमादित्य को एक बार फिर उसे पकड़ने के लिए वापस जाना पड़ा।