विक्रम बेताल की कहानी: दान का अधिकारी कौन?
एक समय की बात है, उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य ने अपनी न्यायप्रियता और वीरता के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की थी। एक रात, राजा विक्रमादित्य अपनी नियमित दिनचर्या के अनुसार श्मशान भूमि पहुंचे। जैसे ही उन्होंने बेताल को पकड़ा और उसे अपने कंधे पर डालकर चलने लगे, बेताल ने उन्हें एक कहानी सुनाई और अंत में एक प्रश्न पूछा।
कहानी:
बहुत समय पहले, एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था। वह विद्वान और दानवीर था। उसकी तीन पुत्रियाँ थीं, और वह उनके विवाह के लिए उपयुक्त वर की तलाश कर रहा था। कुछ समय बाद, उसे तीन योग्य वर मिले, जो उनकी पुत्रियों से विवाह के लिए इच्छुक थे।पहला वर एक महान तीरंदाज था।दूसरा वर एक प्रख्यात चिकित्सक था।तीसरा वर एक ऐसा विद्वान था, जो मृत व्यक्ति को जीवनदान देने की विद्या जानता था।ब्राह्मण ने अपनी तीनों पुत्रियों का विवाह इन तीनों वरों से कर दिया। विवाह के कुछ समय बाद, ब्राह्मण की सबसे छोटी बेटी की अचानक मृत्यु हो गई। तीनों वर उस समय वहाँ उपस्थित थे और अपनी-अपनी क्षमता से ब्राह्मण की सहायता करना चाहते थे।
1. तीरंदाज ने कहा, “मैं अपनी तीरंदाजी से उस व्यक्ति को पकड़ सकता हूँ, जिसने इसे नुकसान पहुँचाया।”
2. चिकित्सक ने कहा, “मैं इसके शरीर को स्वस्थ बना सकता हूँ।”
3. विद्वान ने कहा, “मैं इसे फिर से जीवित कर सकता हूँ।”तीनों ने अपनी-अपनी विद्या का उपयोग किया और ब्राह्मण की बेटी को पुनर्जीवित कर दिया।
प्रश्न:
बेताल ने राजा विक्रम से पूछा, “अब बताओ, उस लड़की को जीवनदान देने में सबसे बड़ा योगदान किसका था? दान का अधिकारी कौन है?”
विक्रम का उत्तर:
राजा विक्रम ने जवाब दिया, “दान का अधिकारी वह विद्वान है, जिसने लड़की को जीवनदान दिया। तीरंदाज और चिकित्सक ने अपने कार्य से सहायक भूमिका निभाई, लेकिन असली जीवनदान विद्वान ने दिया। अतः दान का अधिकारी वही है।”
विक्रम का उत्तर सुनकर बेताल ने कहा, “तुमने सही उत्तर दिया, लेकिन इस उत्तर के कारण मैं फिर से भाग जाऊँगा।” और ऐसा कहते हुए बेताल फिर से उड़कर पेड़ पर जा बैठा।इस प्रकार विक्रम ने अपनी बुद्धिमत्ता और न्यायप्रियता का परिचय दिया।