नीली आँखों वाली परी की कहानी
बहुत समय पहले, एक सुंदर और अद्भुत परी का राज जंगलों और पहाड़ों के बीच बसे एक जादुई राज्य पर था। उस परी का नाम था नीला, और उसकी पहचान उसकी गहरी नीली आँखों से होती थी, जो आकाश की तरह चमकती थीं। कहा जाता था कि उसकी आँखों में जादू था—जो भी उसकी आँखों में देखता, उसे सुकून और आशा मिलती।
नीला का दिल बहुत दयालु था। वह हर रोज जंगल में घूमती और जानवरों, पक्षियों और फूलों की देखभाल करती। लेकिन एक बात उसे परेशान करती थी। राज्य के बाहर एक अंधकारमय बंजर भूमि थी, जहां न तो हरियाली थी और न ही कोई जीवन। वहाँ का वातावरण उदास और भयावह था।
एक दिन नीला ने अपने गुरु, एक वृद्ध जादूगर, से पूछा, “गुरुजी, इस बंजर भूमि को जीवन और खुशी से भरने का कोई उपाय नहीं है?”
जादूगर ने जवाब दिया, “उस भूमि को खुशहाल बनाने के लिए तुम्हें अपनी नीली आँखों की सबसे चमकीली रोशनी का बलिदान करना होगा। क्या तुम इसके लिए तैयार हो?”
नीला कुछ समय के लिए सोच में पड़ गई। उसकी आँखों का जादू न केवल उसकी पहचान थी, बल्कि उसके राज्य के लोगों के लिए भी आशा का स्रोत था। लेकिन उसका दयालु हृदय बंजर भूमि को जीवन से भरने के लिए तैयार था।
अगले दिन, नीला उस बंजर भूमि पर गई। उसने अपनी आँखें बंद कीं और अपने भीतर की सारी जादुई शक्ति को उस भूमि की ओर भेज दिया। अचानक, उसकी आँखों से निकलती हुई नीली रोशनी ने पूरे क्षेत्र को भर दिया। वहां की सूखी जमीन हरी-भरी हो गई, पेड़-पौधे उग आए, और पक्षियों ने गाना शुरू कर दिया।
लेकिन इस प्रक्रिया में नीला अपनी नीली आँखों की चमक खो बैठी। अब उसकी आँखें सामान्य हो गई थीं। लोग इसे देखकर चिंतित हो गए, लेकिन नीला ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैंने अपनी पहचान खोई नहीं है; मैंने अपने जादू का सही इस्तेमाल किया है। अब यह भूमि भी जीवन का हिस्सा बन गई है।”
उस दिन से, बंजर भूमि को “नीला भूमि” कहा जाने लगा, और लोग हर साल वहाँ जाकर नीला के बलिदान को याद करते थे। नीला अब अपनी साधारण आँखों के बावजूद और भी सुंदर और प्रिय हो गई थी, क्योंकि उसकी अच्छाई और निस्वार्थता उसकी सबसे बड़ी पहचान थी।
नैतिक शिक्षा:
निस्वार्थता और दूसरों की भलाई के लिए किए गए बलिदान से सच्ची खुशी मिलती है।