जिद्दी बच्चों को संभालना कई पैरेंट्स के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है. बच्चों को नहलाने से लेकर, खाना खिलाने, सोने तक हर बात पर बच्चों को समझाने से मुश्किल काम औऱ कोई नहीं रह जाता है. बच्चों की परवरिश में पैरेंट्स की गलतियां दिन पर दिन और भारी पड़ती चली जाती हैं औऱ बच्चा पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर निकल जाता है.
जिद्दी बच्चों को संभालने का सबसे कारगर तरीका है कि आप उनके बुरे बर्ताव पर किसी भी तरह की प्रतिक्रिया ना दें जबकि उनके अच्छे व्यवहार पर हमेशा तारीफ करें. मनोवैज्ञानिकों और पैरेंटिंग एक्सपर्ट्स से जानिए कैसे जिद्दी बच्चों की परवरिश करें कि वे एक समझदार बच्चे बनें…
1-उन्हें सुनें, बहस ना करें-अगर आप चाहते हैं कि आपका जिद्दी बच्चा आपको सुने तो इसके लिए आपको खुद उनकी बात ध्यान से सुननी होगी. मजबूत इच्छाशक्ति वाले बच्चों की राय भी बहुत मजबूत होती है और वे कई बार बहस करने लगते हैं. अगर आप उनकी बात नहीं सुनेंगे तो वे और ज्यादा जिद्दी हो जाएंगे.
अगर उन्हें यह महसूस होने लगे कि उनकी बात नहीं सुनी नहीं जा रही हो तो वो धीरे-धीरे आपकी हर बात को दरकिनार करना शुरू कर देंगे. अधिकतर समय जब आपका बच्चा कुछ करने या ना करने की जिद करे तो आपका शांति और धैर्य से उनकी बात सुनें जरूर, उनकी बात खत्म होने से पहले उन्हें ना टोकें. आप उनसे कभी भी गर्म मूड में बात ना करें.
2-बच्चों के साथ जबर्दस्ती बिल्कुल ना करें-जब आप अपने बच्चों के साथ किसी भी चीज को लेकर जबर्दस्ती करते हैं तो वे स्वभाव से विद्रोही होते चले जाते हैं. तत्कालिक तौर पर तो कई बार जबर्दस्ती से आपको समाधान तो मिल जाता है लेकिन आगे के लिए ये खतरनाक होता चला जाता है. बच्चों से जबरन कुछ करवाने से वे वही कुछ करने लगते हैं जिनसे उन्हें मना किया जाता है. आप अपने बच्चों से कनेक्ट होने की कोशिश करें.
मान लीजिए, आपका 6 साल का बच्चा टीवी देखने की जिद कर रहा है तो जबरदस्ती करने से बात नहीं बनेगी. इसके बजाए आप उसके साथ बैठिए और इस चीज में दिलचस्पी दिखाइए कि वे क्या देख रहे हैं. जब आप उनकी चीजों में अपनी दिलचस्पी दिखाएंगी तो वे आपके प्रति ज्यादा जवाबदेह बनते जाएंगे. जो बच्चे अपने पैरेंट्स से कनेक्टेड महसूस करते हैं वे समझदार हो जाते हैं. जिद्दी बच्चों के साथ ऐसा ही रिश्ता बनाएं जिसकी अनदेखी करना उनके लिए मुश्किल हो जाएं. उन्हें खुद से जुड़ा हुआ महसूस कराने के लिए एक कदम बढ़ाएं और उन्हें गले लगाएं.
3-उन्हें विकल्प दीजिए-बच्चों का अपना दिमाग होता है और वे हमेशा वो करना पसंद नहीं करते हैं जो उन्हें कहा जाता है. अगर आप अपने 4 साल के बच्चे को कहेंगी कि वह 9 बजे से पहले बिस्तर में चला जाए तो इसमें कोई शक नहीं है कि आपको इसका जवाब एक बड़ा सा ना मिलेगा. ऐसा आदेश देने के बजाए आप उससे पूछें कि वो सोते समय कौन सी स्टोरीज सुनना पसंद करेगी/करेगा. बच्चों को आदेश ना दें बल्कि उन्हें सुझाव और विकल्प दें. इसके बाद भी आपका बच्चा ना मानें और कहे कि मैं सोने नहीं जाऊंगा तो भी अपना धैर्य ना खोएं. आप उसे कह सकती हैं कि ये तो ऑप्शन उसे दिया ही नहीं गया था. अपनी बात को कई बार कहें लेकिन बिना आपा खोए. आपका बच्चा जल्द ही अपनी जिद छोड़ देगा.
दूसरी तरफ ज्यादा ऑप्शन देना भी अच्छी बात नहीं है. उदाहरण के तौर पर, अगर आप अपने बच्चे से कहेंगी कि वार्डरोब से वह अपने लिए कपड़े निकाल ले तो वह कंफ्यूज हो सकता है लेकिन वहीं अगर आप उसे दो या तीन ऑप्शन देंगी तो वह कंफ्यूज नहीं होगा और आसानी से फैसला कर पाएगा.
4-शांत रहें-अगर आप हर बात पर अपने बच्चे पर चिल्लाएंगी तो शायद आपका बच्चा आपके चीखने को जुबानी लड़ाई का निमंत्रण समझने लगे. इससे आपका बच्चा अपनी तहजीब और भूलता चला जाएगा. आप हमेशा बातचीत को एक निष्कर्ष तक ले जाएं ना कि किसी लड़ाई में उसे तब्दील करें. आप वयस्क हैं औऱ बच्चों की तरह बर्ताव बिल्कुल ना करें. आपको अपने बच्चों को कुछ समझाने में उसकी मदद करनी है, ये याद रखें.
बच्चों के साथ उनके किसी फेवरिट काम में शरीक जरूर हों. इससे आप उनका ‘वोट’ जीतने में कामयाब रहेंगे औऱ उन्हें अपने हिसाब से ढालने में भी. क्योंकि हम पर उन्हीं लोगों की बात का असर पड़ता है जो हमारे दिल के करीब होते हैं.
5-बच्चों का सम्मान करें-अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा आपका और आपके फैसलों का सम्मान करे तो आपको भी उनका सम्मान करना होगा. आपका बच्चा आपकी अथॉरिटी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगा अगर आप उन पर कुछ थोपती हैं.
उनसे सहयोग मांगे, आदेश ना दें. अपने सभी बच्चों के लिए नियम बनाएं और सुविधा के अनुसार उनमें छील ना दें. उनकी भावनाओं और विचारों को तुरंत खारिज ना कर दें. आपके बच्चे खुद से जो काम कर सकते हैं, करने दें. इससे उन्हें यह एहसास होगा कि आफ उन पर भरोसा करती हैं. जो आप कहना चाहती हैं, वही कहें और वही करे जो कहती हैं क्योंकि आपके बच्चे कई चीजें आपके बिना सिखाए आपके ही व्यवहार से सीख जाते हैं.
6-उनके साथ काम करें-जिद्दी बच्चे या अड़ियल रवैये वाले बच्चे बहुत ज्यादा संवेदनशील होते हैं और वे इस बात को गहराई से महसूस करते हैं कि आप उनके साथ कैसा बर्ताव करती हैं. इसलिए अपनी टोन, बॉडी लैंग्वेज, अपने शब्दों को लेकर खास सावधानी बरतें. जब उन्हें आपका व्यवहार अच्छा नहीं लगता है तो वे खुद को बचाने के लिए सब कुछ करने लगते हैं- वे विद्रोही हो जाते हैं, हर बात का जवाब देने लगते हैं औऱ गुस्सा दिखाने लगते हैं. छोटी छोटी बातें हैं लेकिन अहम है. जैसे- ‘तुम ये करो’, ‘तुमसे मैंने ये कहा था’ के बजाए ‘चलो ऐसा करते हैं’, ऐसा करें क्या? कहें.
अगर आप अपने बच्चे से कुछ करवाना चाहती हैं तो उसे कुछ मजेदार तरीके से करवाएं. जैसे कि आप चाहती हैं कि आपका बच्चा खिलौने समेटें तो पहले खुद से ही समेटना शुरू करें औऱ फिर उससे कहें कि क्या वह आपकी मदद कर पाएगा? आप ये भी कह सकती हैं कि आओ देखते हैं कि कौन तेजी से खिलौने समटेता है. ऐसे तरीके कारगर साबित होते हैं.
7- सौदेबाजी-कई बार अपने बच्चों के साथ निगोशिएट करना भी जरूरी होता है. जब बच्चों को अपनी मर्जी की चीज नहीं मिलती है तो वे जिद दिखाने लगते हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि आफ उनकी हर मांग को मान लें. इसका मतलब है सूझबूझ और व्यावहारिक हल. उदाहर के तौर पर- अगर आपका बच्चा सही वक्त पर सोना नहीं चाह रहा है तो उसी वक्त पर सोने का दबाव डालने के बजाए थोड़ी सी ढील दे दें जिससे कि दोनों की मांगे पूरी होती नजर आए.