परी के वरदान की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव में एक गरीब लड़की रहती थी, जिसका नाम मीरा था। मीरा बहुत दयालु और मेहनती थी। वह हर किसी की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहती। गांव वाले उसकी ईमानदारी और सहनशीलता की बहुत प्रशंसा करते थे, लेकिन उसका जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था।
मीरा अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी, और उनके देहांत के बाद वह अकेली रह गई। उसके पास एक छोटी सी झोपड़ी और एक बगीचा था। वह बगीचे में सब्जियां उगाकर अपना गुजारा करती थी।
बूढ़ी औरत की मदद
एक दिन, मीरा जंगल में लकड़ियां इकट्ठा कर रही थी। तभी उसने एक बूढ़ी औरत को देखा, जो भारी सामान उठाने की कोशिश कर रही थी। बूढ़ी औरत कमजोर और थकी हुई लग रही थी। मीरा तुरंत उसकी मदद के लिए दौड़ी और उसका सामान उठाकर गांव तक पहुंचा दिया।
बूढ़ी औरत ने कहा,
“बेटी, तुमने मेरी बहुत मदद की। मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी।”
मीरा ने मुस्कुराते हुए कहा,
“आप बूढ़ी हैं, आपकी मदद करना मेरा फर्ज है। इसमें एहसान जैसी कोई बात नहीं।”
परी का प्रकट होना
बूढ़ी औरत ने अचानक अपना रूप बदला और एक चमकदार परी में बदल गई। मीरा यह देखकर हैरान रह गई। परी ने कहा,
“मीरा, मैं एक परी हूं। मैंने तुम्हारी दयालुता और ईमानदारी की परीक्षा ली। तुमने बिना स्वार्थ के मेरी मदद की। इसके लिए मैं तुम्हें वरदान देना चाहती हूं।”
वरदान
परी ने मीरा से पूछा,
“बताओ, तुम्हें क्या चाहिए?”
मीरा ने जवाब दिया,
“परी माँ, मैं अपने लिए कुछ नहीं चाहती। लेकिन अगर आप मुझे वरदान देना चाहती हैं, तो कृपया ऐसा वरदान दीजिए कि मेरे गांव में कोई भी भूखा न सोए।”
परी ने मीरा की निःस्वार्थ भावना देखकर कहा,
“तुम बहुत नेकदिल हो। मैं तुम्हें ऐसा वरदान देती हूं कि तुम्हारा बगीचा हमेशा हरा-भरा रहेगा और उसमें ऐसी फसलें होंगी, जो गांव के हर भूखे को भोजन दे सकेंगी। इसके अलावा, तुम्हारी झोपड़ी एक सुंदर घर में बदल जाएगी, और तुम्हारे जीवन में कभी कोई कष्ट नहीं आएगा।”
सुखद अंत
परी का वरदान देते ही मीरा का बगीचा फूलों और फलों से भर गया। उसकी झोपड़ी एक सुंदर घर में बदल गई। अब मीरा के पास इतना था कि वह पूरे गांव की मदद कर सकती थी। गांव वाले उसकी उदारता और दयालुता के और भी बड़े प्रशंसक बन गए।
मीरा ने परी के दिए वरदान का इस्तेमाल हमेशा दूसरों की भलाई के लिए किया। वह यह बात जानती थी कि सच्ची खुशी दूसरों की मदद करके ही मिलती है।
“दयालुता और निःस्वार्थता हमेशा बड़े इनाम लेकर आती हैं।”