Bhagya Wale Ka Bhoot Hal Jotata Hai Story In Hindi | Bhoot ki story
आज से लगभग पच्चीस साल पहले की है।उधमपुर नामक गाँव में श्रीधर चौबे नाम के एक ब्राह्मण रहा करते थे।कुल छह बीघे जमीन थी उनके पास।
वे अपनी तथा अपने परिवार की आजीविका अपनी इस खेती और यजमानी से चलाते थे।पढ़े-लिखे तो ज्यादा न थे, पर काम चलाने भर पूजा-पाठ कर लिया करते थे।यजमानी के क्षेत्र में लोभी ज्यादा न थे, जिस वजह से कहिए या किसी और वजह से, यजमानों के बीच उनका एक अच्छा सम्मान था।वे पूजा-पाठ करने के लिए अपने गाँव में ही नहीं, दूर-दूर तक के गाँवों में जाया करते थे।
उसकी एक वजह यह भी थी कि उस इलाके में ब्राह्मणों का अभाव था।श्रीधर चौबे धर्म-कर्म दोनों में विश्वास रखते थे।इसी के परिणामस्वरुप यजमानी से पर्याप्त धन कमाने के बावजूद खेती करना न छोड़ते थे।जबकि बहुतेरे ऐसा देखा गया है कि इस स्थिति में खेती को जटिल कार्य समझ कर या तो लोग जैसे-तैसे इसे करते हैं या तो मनि-बटाई दे देते हैं।पर श्रीधर चौबे इनमें से न थे। वे अपनी खेती आप करते थे।
Bhagya Wale Ka Bhoot Hal Jotata Hai Story In Hindi | Bhoot ki story
यहाँ तक कि जरूरत पड़ने पर ही मजदूर भी लगाते थे। -फाल्गुन का महीना था और चाँद की रात (लगभग आधा शुक्ल पक्ष )। आकाश में आधे चाँद की ज्योत्सना थी।बगल-अगल कुछ टिमटिमाते तारे।कुछ खेतों में गेहूँ की बालियां लहलहा रही थी। तो कुछ में गर्भ था। अभी कुछ खेतों में (गेहूँ लगे खेतों को) पानी की जरूरत थी।इस जरुरत में श्रीधर चौबे की लगभग आधी खेती आती थी।मतलब उनके लगभग तीन बीघे खेत ऐसे थे, जिनकी फसलों को एक पानी और देने की आवश्यकता थी।
आज विज्ञान ने हर क्षेत्र में तरक्की की है और नित्य कर रहा है।इन क्षेत्रों में कृषि भी एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें सिंचाई से लेकर सभी चीजों में वैज्ञानिकता आ गई है।बड़ी-बड़ी मशीनें चंद घंटों में बहुत सारी भूमि सींचकर रख देती हैं।पर बात जिस समय की है उस समय भी खेतों की सिंचाई के लिए छोटी-बड़ी मशीनेंअवश्य थीं, पर सर्वसुलभ और सबके औकात की नहीं थी।बड़े-बड़े किसानों का ही ध्यान उस ओर जाता था और अपनी उपयोगिता के लिए उन चीजों का इस्तेमाल करते थे।पर साधारण से लेकर छोटे किसान खेत जोतने से लेकर पटाने, काटने और दौनी (अनाज निकालने) करने तक पुराने और प्रदूषण रहित औजारों और तकनीकों का इस्तेमाल करते थे।जैसे- खेत जोतने के लिए हल-बैल, पटाने के लिए लाठा-कूड़ी या लाठा-करींग, दौनी के लिए फसलों को छींटकर बैलों से रौंदवाना। तो अब बात पर आऊँ।श्रीधर चौबे की अन्य साधारण किसानों की तरह पुराने औजारों से ही खेती करते थे।
Bhagya Wale Ka Bhoot Hal Jotata Hai Story In Hindi | Bhoot ki story
उस दिन उन्होंने सवेरे ही अपने खेतों को पटाने के लिए लाठा-करींग गाड़ दिया था और लगभग दो घंटे चलाकर तीन-साढ़े तीन कटटे के लगभग खेत पटाया भी था।फिर उन्होंने उसीसमय तय किया था कि आधी रात तक इंजोरिया (चाँद रहना) रहेगी, उतनी देर तक तो अवश्य ही पटाऊँगा।रात को इस मौसम में काम करने में भी खूब बनता है।और श्रीधर चौबे शाम को नाश्ते के रुप में दो रोटियाँ, मट्ठे में गुड़ कर खाया और खेत पटाने निकल गएँलगभग तीन घंटों तक लगातार खेत पटाया।
अब उनकी भूख बढ़ने लगी थी।वे सोच रहे थे- या तो एकाध घंटा और पटा लूँ, नहीं तो घर से तुरंत खाकर आ जाऊँ और जब तक रात अंधेरी न हो जाए, तब तक पटाऊँ।इसी ऊहापोह में हो अनमने-सा होकर करींग (खेत पटाने का धनुषनुमा एक लंबा पात्र) चला ही रहे थे कि अपने से कुछ दूरी पर आते हुए एक आदमी को देख हल्का भयभीत हो करींग चलाना रोक दिया।
Bhagya Wale Ka Bhoot Hal Jotata Hai Story In Hindi | Bhoot ki story
वह आदमी उनके और निकट आया और दूर से ही हाथ जोड़कर प्रणाम किया।श्रीधर चौबे ने आशीर्वाद के रुप में ‘कल्याण हो, कल्याण हो’ अवश्य कहा, बोली और आदमी न पहचानने पर उससे पूछ डाला, ” माफ कीजिएगा, मैंने आपको पहचाना नहीं।”ऐसा कहते हुए वे करींग चलाना छोड़कर खेती की मेंड़ पर आ गए।पर “मैं बीरपुर का हू बाबा, मंगल सिंह।
आप तो हमारी तरफ भी पूजा-पाठ के लिए जाते ही हैं। मैं आपको खूब पहचानता हूँ।”उस आदमी ने उत्तर दिया।”अच्छा-अच्छा यजमान बहुत अच्छा। कहिए, किधर चले हैं। और सब खैरियत तो है? “आपकी दया से सब कुशल-मंगल है बाबा।एकडंगा गाँव में मेरी बेटी ब्याही है। बहुत दिन हो गए, सोचा चलूं भेंट कर लूँ। किसान को चैन कब है।उसके लिए क्या दिन और क्या रात, हमेशा काम ही काम है। पर इसी में तो हमें अन्य कामों के लिए भी तो समय निकालना है।तो सोचा- चलो रात को ही चला जाऊँगा। आपके खाँसने की आवाज पाकर इस तरफ चला आया। जरा चूना है तो लाइएँ खैनी खाएँगे।”” हाँ-हाँ लीजिए न यजमान, बनाइए न जरा मैं भी खाऊँगा। पटाने के फेर में नहीं बना रहा था।नहीं तो मुझे भी कब से खाने का मन कर रहा था।” कहते हुए श्रीधर चौबे ने उसआदमी को खैनी और चूना दोनों दिए।”खैनी है बाबा, सिर्फ चूना दीजिए। अह! लीजिए न यजमान। आप तो हमेशा कुछ-न-कुछ देते रहते हैं।
Bhagya Wale Ka Bhoot Hal Jotata Hai Story In Hindi | Bhoot ki story
कभी मुझे भी तोमौका दीजिएँ” अब आपकी बात क्या उठाऊँ बाबा।लाइए, पर ब्राह्मणों का धन खाने में डर लगता है।” “छोड़िए भी उतनी पुरानी बातें। फिर कभी नाव पर गाड़ी और कभी गाड़ी पर भी तो नाव होती है। आप सब आनंदित हैं, यही हम चाहते हैं।”दोनों आमने-सामने खेत की मेंड़ पर ही बैठ गए और अन्य बातें करने लगे। इधर अपने को मंगल सिंह बता रहा वह आदमी खैनी भी बना रहा था।खैनी जब बन गई तो मंगल सिंह ने पहले पंडितजी को प्रेमपूर्वक खैनी देने के लिए हथेली बढ़ाई और उनके लेने के पश्चात् बची खैनी अपने होंठों में दाब ली।“अब छोड़ देता हूँ यजमान। थक गया हूँ।
कल आकर पटाऊँगा। फिर भूख भी लग गई है। । एक मन तो करता है कि खाकर आऊँ तो एक झोंक फिर करींग चलाऊँ।पर ऐसा न करूंगा। एकाध दिन में ऐसी बात नहीं है कि फसल पर असर पड़ेगा।”“ऐ बाबा! एक काम कीजिएँ जाइए आप घर, खाकर आइए, तब तक मैं थोड़ा चलाता” अरे नहीं-नहीं, आप क्या चलाइएगा यजमान।””क्यों नहीं बाबा। आपकी सेवा करना तो हमारा धर्म बनता है।
Bhagya Wale Ka Bhoot Hal Jotata Hai Story In Hindi | Bhoot ki story
आपके आशीर्वाद से ही तो हम सब जी रहे हैं।”” “ऐसी बात क्या है यजमाना हमारा आशीर्वाद तो यजमानों के कुशल-मंगल के लिए हमेशा निकलते रहता है। अभी तो आप हमारे अतिथि समान हैं।मैं तो कहूँगा, आप हमारे साथ हमारे घर चलें और रुखा-सूखा जो भी हो, थोड़ा-बहुत ग्रहण कीजिएँ””उसके लिए सोचना नहीं है बाबा। पर आपके अन्न खाने से पाप न लिखेगा।” “पाप क्या लिखेगा यजमान। आप सब का भी तो दिया हुआ धन है मेरे पास। फिर प्रसाद समझ ही ग्रहण कीजिएगा।”अबर मंगल सिंह कुछ देर तक के लिए चुप रह गया।उसे चुप रहे देख श्रीधर चौबे ने पूछा, “क्या सोचते हैं यजमान ? चलिए उठिए दोनों यजमान-पुरोहित साथ बैठकर खाएँगे।” “कहिए संकोच कैसा।””
इसे मेरी प्रार्थना समझें और कष्ट के लिए माफ कीजिएँ मैं चाहता हूँ कि आपकी कुछ सेवा करूँ।इतना ही है तो अपने हाथ से प्रसाद यहीं लेते आइएँ आप घर पर खा लीजिएँ और मेरे लिए थोड़ा-सा किसी बर्तन में लेते आइएगा। तब तक मैं आपकी कुछ सेवा कर लूँ।क्योंकि भूख तो लगी हुई है, पर बिना कुछ सेवा किए आपका एक दाना भी मुँह में न डालूँगा।अब पंडितजी विवश थे। न चाहकर भी उन्हें दुबारा खेत पर आना जरुरी हो गया था। वे ऐसा करने को तैयार हो गएँ उन्होंने जाते हुए मंगल सिंह को कहा, “ठीक है यजमान, अभी आता हूँ। और वे घर की तरफ चल पड़े।उनके घर की तरफ चल जाने के बाद मंगल सिंह पानी में उतर आया और लगा पंडितजी का खेत पटाने।इधर पंडितजी ने अपने घर पहुँचकर खाना खाया और चार रोटियाँ और थोड़ी सब्जी और एक अचार अपने अतिथि स्वरुप यजमान मंगल सिंह के लिए लेकर पुनः अपने खेत की ओर चल पड़े।पर यह क्या!
उस आदमी का वहाँ कोई अता-पता न था। चौबेजी ने पहले वहाँ खड़े-खड़े इधर-उधर देखा, फिर कोई सुराग न पा सशंकित होकर इधर-उधर घूमकर उस आदमी को खोजने लगे।उनके दिमाग में इस समय एक बात यह भी थी कि कहीं वह आदमी दीर्घ शंका (शौच )करने तो कहीं न बैठा है।पंडितजी ने उसे इधर-उधर काफी कुछ खोजा, हल्की-फुल्की आवाज भी लगाई, पर कहीं उस आदमी का कोई सुराग न लगा।अब पंडितजी हार-दारकर एक किनारे बैठ गएँ सोचने लगे- उस आदमी के बारे में।
कौन था और कहाँ चला गया? फिर गया भी तो क्यों? किसी बात को लेकर दुख हुआ या….?दुख तो नहीं पहुँचना चाहिएँ मैंने थोड़े उसे कुछ कहा था। वह तो जबरदस्ती खेत पटाने को तैयार था। मैंने तो दस बार मना किया था। पर इतना छल किया भी तो क्यों ? बतंगड़ आदमी था क्या वह।सहसा इन्हीं सोच के बीच एक बात और दिमाग में आई। अब वे रोमांचित होकर रह गए। अरे कहीं …? बोली तो कुछ-कुछ…। फिर देह भी तो कुछ गनगना गई थी।अब जिस कारण से भी हो, एक पल भी वहाँ रुकना न चाहते थे पंडितजी।
Bhagya Wale Ka Bhoot Hal Jotata Hai Story In Hindi | Bhoot ki story
एक नजर चारों तरफ डाली और उस आदमी के लिए लाया खाना उठाए पुनः घर की ओर लपक पड़े।घर पहुँचे सो गएँ पर रात भर यह खटका बना रहा कि वह आदमी था कौन। लगभग तीसरे पहर उन्हें पूरी आँख लग पाई होगी।चिड़ियाँ चहचहाई और श्रीधर चौबे की अन्य दिनों की तरह आज भी खुल गई नींद।उठे और लोटा लेकर सीधे अपने खेतों की ओर लपके। खेत घूम-घूम कर देखने लगे- कितना पटा है।पर देखकर तो उनकी आँखें फटी जाती थीं। घोर आश्चर्य हो रहा था उन्हें-‘अरे! ये सारे खेत मेरे पटे हुए हैं। यह कैसे हुआ? बहुत तो दस-बारह कढे पट सकते हैं।कितना चलाया है लाठा, वही न। (दिन के दो घंटे और रात के लगभग चार-साढ़े चार घंटे।
इतना में इतना खेत कैसे पट जाएगा? यह तो घोर आश्चर्य की बात है।’सहसा उनका ध्यान रोमांच के साथ मंगल सिंह पर खींच गया- कहीं मंगल सिंह नाम का वह आदमी…।’ पंडितजी का शक कुछ गहरा होने लगा था। कुछ देर बाद वहाँ बैठ गएँ कुछभय के मारे उन्हें शौच की हाजत महसूस हुई।कुछ भय इसलिए कि पंडितजी के मन में उसे मंगल सिंह के बारे में जो भूत होने का शक और भय पैदा हुआ था, वह कोई नया था।उन्हें तो कई बार भूत से भेंट हुई थी।
पहले तो लोग रात को चलने से डरते थोड़े थे।ज्यादा तो रात को ही चलना पसंद करते थे।यही वजह न थी कि उतनी रात को भी उस आदमी (मंगल सिंह ) के देखने और वैसा कहने के बाद पंडितजी को कुछ शक या आश्चर्य न लगा था।और फिर पंडितजी को दूर-दूर तक के गाँवों में यजमानों के यहाँ से लौटने में अक्सर रात हो जाया करती थी।कभी-कभी तो आधी-आधी रात में फिर कभी उससे थोड़ी ज्यादा भी। और कई बार उन्हें प्रेतात्माओं से भेंट हो चुकी थी।
Bhagya Wale Ka Bhoot Hal Jotata Hai Story In Hindi | Bhoot ki story
तो पंडितजी का भाग्य कहिए कि इन प्रेतात्माओं में से एक ही प्रेतात्मा दुष्ट निकली थी, जिसने इन्हें उस रात दो बार उठाकर पटक दिया था।उसके बाद कुछ दिन तक तो रात को चलना छोड़ दिया था इन्होंने। पर फिर यजमानों के आग्रह और दान के लोभ में पड़कर धीरे-धीरे पुनः रात को भी चलना स्वीकार कर लिया था।पंडितजी यह सब सोच ही रहे थे कि उन्हीं के गाँव का मंडुक भगत नाम का एक आदमी उस जगह को जा पहुँचा।पंडितजी के पास गया और उनके चरण स्पर्श कर खड़ा हो गया।पंडितजी ने आशीर्वाद देते हुए पूछा, “क्या मंडुक, मैदान आए हो ?”“जी हो लिया। कुल्ली-कलाली भी कर ली।
Bhagya Wale Ka Bhoot Hal Jotata Hai Story In Hindi | Bhoot ki story
आप पर नजर पड़ी तो चला आया हूँ।” “बहुत अच्छा, और सब कुशल-मंगल हैं न ?”“जी बाबा, सब आप सब की दया है। गेहूँ पट गया बाबा कि अभी और बाकी ही है।ए हो मंडुक, क्या कहूँ बेटा, तब से बड़े आश्चर्य में पड़ा हुआ हूँ।” “क्या बाबा ? किस बात का इतना आश्चर्य है आपको ?””देखो न कल रात को जब मैं खेत पटा रहा था तो मंगल सिंह नाम का एक बाहरी आदमी आया।उसके अनुसार वह अपनी बेटी के यहाँ एकडंगा गाँव जा रहा था। वह जबरदस्ती मेरा खेत पटाने को तैयार था।इधर, मैं उसके लिए घर से खाना लाने गया और लेकर आया तो कहीं उसका अता-पता न पाया। और अभी देखो न, मेरे सारे खेत पटे हुए हैं।छह-सात घंटों में तीन बीघे खेत पट सकते हैं मंडुक? बोलो तो? फिर उस आदमी ने भी बहुत पटाया होगा तो एक घंटा।समझ में नहीं आता कि इतने खेत मेरे इतने समय में कैसे पट गए ?” “बाबा! आप दुनिया को बतलाते हैं, आपको कौन बतलाएगा। क्या आप ये नहीं समझरहे हैं कि ये सारे खेत मंगल सिंह नामक उस भूत ने पटाए हैं।चलिए, सोचना क्या है।
यह कहावत तो आज मैंने भी अपनी आँखों से देख ली- भाग्य वाले का भूत हल जोतता है।””अरे मैं अपने को भाग्यवाला थोड़े मानता हूँ। पर मुझे भी यही लगता है कि मंडुक मंगल सिंह नाम का वह आदमी कोई और नहीं भूत था।और उसी ने अपनी माया से इतनी जल्दी सारे खेत पटा डाले। (फिर भाव बदलकर ) अच्छा हो, अब ज्यादा न सोचना।तू बैठ आगे, मैं दीर्घशंका करके आता हूँ।” मंडुक एक तरफ बढ़ चला।इधर श्रीधर चौबे एक किनारे दीर्घशंका करने बैठ गएँ ।