भूत की कहानी: भूतिया कुर्सी
एक छोटे से गाँव में, एक पुरानी हवेली थी, जो अब वीरान हो चुकी थी। हवेली में बहुत सारी पुरानी चीज़ें रखी थीं, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा एक लकड़ी की कुर्सी की होती थी। गाँव के लोग कहते थे कि वह कुर्सी भूतिया थी। जिसने भी उस पर बैठने की कोशिश की, उसने अजीब-अजीब अनुभव किए।
कहानी के मुताबिक, यह कुर्सी कभी हवेली के मालिक, ठाकुर रघुनाथ सिंह की थी। ठाकुर रघुनाथ बहुत कठोर और स्वार्थी आदमी थे। कहते हैं कि उन्होंने अपने नौकरों और किसानों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था। एक दिन, उनकी हवेली में काम करने वाला एक गरीब नौकर उनकी सख्ती से तंग आकर कुर्सी के पास खड़ा होकर श्राप दे बैठा, “इस कुर्सी पर बैठने वाला कभी चैन से नहीं रह सकेगा।”
कुछ दिनों बाद, ठाकुर रघुनाथ की अचानक मौत हो गई। उनके परिवार वालों ने कुर्सी को हवेली में छोड़ दिया, क्योंकि लोग डरने लगे थे। इसके बाद, जिसने भी उस कुर्सी पर बैठने की कोशिश की, उसके साथ कुछ न कुछ बुरा हुआ। कोई बीमार पड़ गया, तो किसी को अजीब-अजीब सपने आने लगे।
गाँव में यह बात फैल गई कि कुर्सी में ठाकुर रघुनाथ की आत्मा बस चुकी है। लोग हवेली के पास जाने से भी कतराने लगे।
कुछ सालों बाद, शहर से एक प्रोफेसर, डॉ. आदित्य, गाँव में आए। वह भूत-प्रेत और अजीब घटनाओं पर शोध करते थे। जब उन्होंने भूतिया कुर्सी के बारे में सुना, तो वह बहुत उत्सुक हुए और हवेली में जाने का फैसला किया। गाँव वालों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माने।
डॉ. आदित्य जब हवेली पहुँचे, तो वहाँ सब कुछ शांत था। उन्होंने कुर्सी को ध्यान से देखा। वह एक साधारण सी लकड़ी की कुर्सी थी, लेकिन उसमें अजीब सी ठंडक थी। उन्होंने कुर्सी पर बैठने का फैसला किया। जैसे ही वह कुर्सी पर बैठे, उन्हें लगा जैसे कोई उनकी छाती पर भारी बोझ डाल रहा हो। उन्हें ठाकुर रघुनाथ की छवि दिखाई दी, जो गुस्से से उन्हें घूर रहे थे।
डॉ. आदित्य समझ गए कि कुर्सी में नकारात्मक ऊर्जा और आत्मा का प्रभाव है। उन्होंने गाँव के एक बुजुर्ग पुजारी से मदद ली। पुजारी ने हवेली में पूजा की और कुर्सी को गंगाजल से शुद्ध किया। पूजा के बाद, कुर्सी को जला दिया गया, ताकि आत्मा हमेशा के लिए मुक्त हो सके।
उसके बाद से, हवेली में किसी ने कोई अजीब घटना नहीं देखी। गाँव वाले चैन की सांस लेने लगे और वह भूतिया कुर्सी सिर्फ एक कहानी बनकर रह गई। लेकिन आज भी, लोग इस कहानी को सुनकर डर जाते हैं और यह सीख लेते हैं कि किसी की बद्दुआ या श्राप को हल्के में नहीं लेना चाहिए।