ब्राह्मण और सांप की कहानी
एक समय की बात है, किसी नगर में हरिदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह बहुत ही गरीब था और उसके पास खेती करने के लिए भी जमीन नहीं थी। हरिदत्त अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए शहर जाता था और मजदूरी करता था।
एक दिन हरिदत्त अपने खेत में काम कर रहा था कि उसे एक सांप दिखाई दिया। सांप बहुत ही सुंदर था और उसके फन पर एक चमकदार मुकुट था। हरिदत्त को लगा कि यह सांप कोई देवता है।हरिदत्त ने सांप की पूजा की और उसे दूध पिलाया।
सांप ने हरिदत्त को आशीर्वाद दिया और कहा, “तुमने मेरे साथ बहुत दयालुता की है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। मैं तुम्हारी सभी इच्छाएं पूरी करूंगा।”हरिदत्त बहुत खुश हुआ। उसने सांप से कहा, “मैं बहुत गरीब हूं। मुझे कुछ धन चाहिए ताकि मैं अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकूं।”सांप ने कहा, “तुम चिंता मत करो।
मैं तुम्हें हर रोज सोने का एक सिक्का दूंगा।”और ऐसा ही हुआ। हरिदत्त को हर रोज एक सोने का सिक्का मिलता था। वह अपनी कमाई से अपने परिवार का पालन-पोषण करने लगा और वह बहुत ही खुश रहने लगा।
एक दिन, हरिदत्त के बेटे को पता चला कि उसके पिता को हर रोज सोने का एक सिक्का मिलता है। वह बहुत लालची था और उसने अपने पिता से कहा, “पिताजी, मुझे भी सोने का सिक्का चाहिए।”हरिदत्त ने कहा, “बेटा, मैं तुम्हें सोने का सिक्का नहीं दे सकता।
यह सांप मुझे देता है।”बेटे ने कहा, “मैं सांप से सोने का सिक्का ले लूंगा।”और अगले दिन, जब सांप दूध पीने आया, तो बेटे ने उसके सिर पर लाठी से वार कर दिया। सांप मर गया।
सांप मरते ही सारा धन भी गायब हो गया। बेटा बहुत दुखी हुआ और उसने अपने पिता से माफी मांगी।
हरिदत्त ने कहा, “बेटा, लालच बुरी बला है। इसी लालच के कारण तुम्हें सांप मारना पड़ा और सारा धन भी गायब हो गया।”
शिक्षालालच बुरी बला है। लालच के कारण मनुष्य कई बुराइयों को करने को तैयार हो जाता है।