Camel And Jackal Story In Hindi | ऊँट और गीदड़ की कहानी
एक बहुत पुरानी कहानी है जंगल की, जिसमें एक ऊँट और एक गीदड़ अच्छे मित्र थे। वे दोनों रोज़ाना साथ में घूमते और खेलते थे। एक दिन, जंगल में बहुत गरमी थी और पानी की कमी भी थी।
गरमी के कारण ऊँट को बहुत प्यास लगने लगी। वह जंगल में पानी की खोज करने लगा। गीदड़ भी ऊँट के साथ चलने का निर्णय किया। दोनों मित्र जंगल की गहराई में एक गुफा मिली, जिसमें पानी की छोटी सी झील थी।
Camel And Jackal Story In Hindi | ऊँट और गीदड़ की कहानी
झील के किनारे पहुँचकर ऊँट ने पानी पीना शुरू किया, लेकिन पानी बहुत नीचे था और उसे पहुँचने के लिए ऊँट को अधिक पैर बढ़ाना पड़ रहा था। वह पानी पीने के लिए किसी भी तरह से प्रयास कर रहा था, लेकिन उसके पैर बहुत छोटे थे और पानी के किनारे पहुँचने में वह नाकाम रहा।
गीदड़ ने देखा कि ऊँट को अपनी यह दुर्दशा देखकर काफी चिंतित है। इसलिए उसने चालाकी से कहा, “दोस्त, आप इतने तकलीफ में क्यों हो? मैं एक युक्ति बता सकता हूं, जिससे आप आसानी से पानी पी सकते हैं।
“ऊँट ने आशा जताते हुए पूछा, “कृपया मुझे उस युक्ति के बारे में बताएं।
Camel And Jackal Story In Hindi | ऊँट और गीदड़ की कहानी
“गीदड़ ने धैर्य से कहा, “आपको पानी तक पहुँचने के लिए एक तीर्थयात्रा करनी होगी।
मैं आपको पानी तक पहुँचा सकता हूं, लेकिन उसके लिए आपको मुझे अपने पीठ पर बैठने की जरूरत होगी। फिर मैं आपको झील ले जाऊंगा और आप पानी पी सकेंगे।
“ऊँट ने गीदड़ के विचार को स्वीकार लिया और उसके पीठ पर बैठ गया। गीदड़ ने ऊँट को धैर्य से झील तक पहुँचाया। ऊँट ने खुशी से पानी पी लिया और उसको धन्यवाद दिया।
Camel And Jackal Story In Hindi | ऊँट और गीदड़ की कहानी
गीदड़ ने अपनी चालाकी से कहा, “दोस्त, यह तो मेरा धर्म है कि मैं आपकी मदद करूँ, लेकिन मुझे भरोसा है कि आप हमेशा सच्चे मित्र रहेंगे और कभी भी दूसरों को धोखा नहीं देंगे।
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“ऊँट ने प्रभावित होकर कहा, “बिल्कुल दोस्त, मैं कभी भी आपको धोखा नहीं दूंगा। आपने मुझे इतनी मदद की है, इसका मैं आभारी रहूँगा।”दोनों दोस्त फिर से खेलने और मिलने लगे। उनकी मित्रता और विश्वासघाती व्यवहार के कारण वे जंगल के सबसे अच्छे मित्र थे। और यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्ची मित्रता में विश्वास करने का महत्व है और हमेशा दूसरों के साथ धोखा नहीं देना चाहिए।
कहानी से सीख
ऊँट और गीदड़ की कहानी से यह सीख मिलती है कि चालाकी नहीं करनी चाहिए। अपनी करनी खुद पर भारी पड़ जाती है। जो जैसा करता है उसे वैसा ही भरना होता है।