एक बार की बात है, जंगल में गौरैया नामक एक छोटी सी परिंदी रहती थी। वह बहुत ही मस्तिष्क थी और हर वक्त खुश रहती थी। वह अपने पंखों से आसमान में उड़ती और गाती थी।
एक दिन, उसके सामने एक घमंडी हाथी आया। वह हाथी बड़ा ही अहंकारी था और उसे अपने आप को सबसे बड़ा मानता था। जब गौरैया ने उसे देखा, तो उसने कहा, “नमस्ते, भगवान की शान्ति हो।” हाथी ने उसे तेजी से देखा और कहा, “तुम यहाँ क्या कर रही हो? मेरे सामने रहो और मुझे प्रणाम करो, क्योंकि मैं हूँ जंगल का राजा।” गौरैया ने मुस्कुराते हुए कहा, “क्या आप सचमुच जंगल के राजा हैं?
मुझे नहीं लगता, क्योंकि वास्तव में सबका अपना महत्व है।” हाथी ने गौरैया की ओर गर्व से देखा और कहा, “तुम्हें मालूम नहीं है कि मैं कितना बड़ा हूँ।” गौरैया ने आत्मसंयम से कहा, “हां, मैं जानती हूँ कि आप बड़े हैं, लेकिन बड़े होने का मतलब यह नहीं है कि आपको दूसरों को छोटा दिखाना चाहिए।” हाथी की अहंकारी आँखों में थोड़ा सा संवेदनशीलता दिखाई दी।
उसने गौरैया से कहा, “तुम सही कह रही हो, मैं गलत था।”
इसके बाद, हाथी ने गौरैया से मिलकर उसकी तरह आत्मसंयम को महत्व देना शुरू किया और दूसरों के साथ सहानुभूति की भावना विकसित की।
दोनों के बीच मित्रता की बुनियाद पर एक नया जंगली संबंध बना।