गौतम बुद्ध और अंगुलिमाल की कथा
एक समय की बात है, अंगुलिमाल नाम का एक भयानक डाकू था। वह निर्दयी और क्रूर था। उसका मानना था कि अगर वह 1000 लोगों की उंगलियां काटकर एक माला बनाएगा, तो उसे महान शक्ति प्राप्त होगी। उसने जंगलों में आतंक मचा रखा था, और लोगों ने डर के मारे उस रास्ते पर जाना ही छोड़ दिया था।
एक दिन गौतम बुद्ध को यह बात पता चली। वे उसी रास्ते से जाने का निर्णय कर बैठे। उनके शिष्यों ने उन्हें रोका और कहा, “भगवन, वह डाकू आपको मार देगा। कृपया वहां मत जाइए।”बुद्ध मुस्कुराए और बोले, “मुझे उसे समझाना है।”जब अंगुलिमाल ने गौतम बुद्ध को अपने जंगल में आते देखा, तो वह क्रोधित हो गया। उसने चिल्लाकर कहा, “रुक जाओ, आगे मत बढ़ो!”बुद्ध ने शांति से जवाब दिया, “मैं तो पहले ही रुक चुका हूं।
अब तुम्हें रुकना होगा।”अंगुलिमाल चौंक गया और बोला, “यह क्या मजाक है? तुम चल रहे हो और कहते हो कि रुक गए हो?”बुद्ध ने समझाते हुए कहा, “मैं हिंसा और बुराई के मार्ग पर नहीं चलता, इसलिए मैं रुक गया हूँ। लेकिन तुम अभी भी हिंसा और पाप के रास्ते पर चल रहे हो। तुम्हें रुकना चाहिए।”बुद्ध के शांत और दयालु शब्दों ने अंगुलिमाल के दिल को छू लिया। वह उनके चरणों में गिर पड़ा और रोते हुए बोला, “मुझे क्षमा करें। मैं अब इस पाप को और नहीं करूंगा।
कृपया मुझे सही मार्ग दिखाइए।”गौतम बुद्ध ने उसे सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया। अंगुलिमाल ने अपने बुरे कर्मों को छोड़कर बुद्ध के शिष्य के रूप में एक नया जीवन शुरू किया।
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्चा परिवर्तन संभव है, चाहे व्यक्ति कितना भी बुरा क्यों न हो। प्रेम, करुणा, और सत्य का मार्ग हर किसी को सही दिशा में ले जा सकता है।