रामायण की कहानी: कुंभकरण की नींद | Kumbhakarna Ki Neend in Hindi

कुंभकर्ण की नींद

प्राचीन समय में लंका का राजा रावण था। उसका एक भाई था, जिसका नाम कुंभकर्ण था। कुंभकर्ण बहुत बलशाली और विशालकाय था। वह जितना शक्तिशाली था, उतना ही अधिक खाने-पीने और सोने का शौकीन भी था। कुंभकर्ण इतना ज्यादा खाता था कि देवता भी उससे परेशान हो गए।जब रावण ने देवताओं और ऋषियों को पराजित करने के लिए अपने भाइयों सहित कठोर तपस्या की, तो ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान देने का वचन दिया। कुंभकर्ण ने भी वरदान माँगने के लिए अपनी बारी ली, लेकिन उसकी जीभ फिसल गई।

वह “इंद्रासन” (स्वर्ग के राजा इंद्र का सिंहासन) माँगना चाहता था, लेकिन गलती से उसने “निद्रासन” (नींद का सिंहासन) माँग लिया।इससे देवताओं को राहत मिली, क्योंकि कुंभकर्ण जब सोता था, तो उसे जागने में छह महीने लगते थे। वह छह महीने लगातार सोता रहता और केवल छह महीने जागता। इस वरदान ने कुंभकर्ण को नींद का प्रतीक बना दिया।

जब राम और रावण के बीच युद्ध हुआ, तो रावण को अपनी हार का डर सताने लगा। उसने कुंभकर्ण को जगाने का फैसला किया। कुंभकर्ण को जगाने के लिए सैनिकों ने तरह-तरह के उपाय किए—नगाड़े बजाए, ढोल पीटे, उस पर पानी डाला, खाना खिलाया और तरह-तरह की आवाजें निकालीं। बड़ी मुश्किल से कुंभकर्ण जागा। जागते ही उसने अपनी भूख मिटाने के लिए पहाड़ जैसे भोजन खा लिया।युद्ध में कुंभकर्ण ने राम और वानर सेना को चुनौती दी, लेकिन अंततः श्रीराम ने अपने बाणों से उसे पराजित कर दिया।

शिक्षा:इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि असंतुलित जीवन, आलस्य और अत्यधिक सोने से हानि हो सकती है। संतुलन और सतर्कता जीवन में सफलता के लिए आवश्यक हैं।