मुल्ला नसरुद्दीन और भिखारी | Mulla Nasruddin Aur Bhikari

मुल्ला नसरुद्दीन और भिखारी

एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन अपने घर के बाहर बैठे हुए थे। तभी एक भिखारी उनके पास आया और बोला, “मुल्ला साहब, कुछ खाने के लिए दे दीजिए। कई दिन से भूखा हूँ।”

मुल्ला नसरुद्दीन ने भिखारी को देखा और कहा, “तुम्हारे पास कटोरा तो है, पर यह इतना छोटा क्यों है?”भिखारी ने हैरानी से जवाब दिया, “मुल्ला साहब, यह तो भिखारी का कटोरा है, इतना ही होता है।”मुल्ला मुस्कुराए और बोले, “भाई, जब कटोरा ही छोटा है, तो दान बड़ा कैसे मिलेगा? जाओ, पहले बड़ा कटोरा लेकर आओ।”भिखारी हैरानी से बोला, “मुल्ला साहब, भूख लगी है। मुझे कटोरे की नहीं, रोटी की जरूरत है।”मुल्ला ने गहरी सांस ली और कहा, “

अच्छा, अगर तुम्हें सच में रोटी चाहिए, तो मेरे साथ चलो।”भिखारी खुश हो गया और मुल्ला के साथ चल पड़ा। मुल्ला उसे बाजार ले गए और बोले, “देखो, मेहनत से जो कमाएगा, वही पेट भरेगा। यहां काम ढूंढो और कुछ कमाओ।”भिखारी ने हंसते हुए कहा,

“मुल्ला साहब, आप सिखा रहे हैं, पर दान नहीं दे रहे।”मुल्ला मुस्कुराए और बोले, “दान मैं दूंगा, पर सबसे बड़ा दान यह है कि मैं तुम्हें आत्मनिर्भर बनाऊं। चलो, आज से तुम्हारी मेहनत की शुरुआत हो।”

इस कहानी का तात्पर्य है कि मेहनत और आत्मनिर्भरता ही असली दौलत है।