मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी: गरीब का झोला / Mullah Nasruddin Story: Gareeb Ka Jhola

गरीब का झोला –

मुल्ला नसरुद्दीन की कहानीएक बार मुल्ला नसरुद्दीन अपने गांव की गली से गुजर रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक गरीब आदमी फटे पुराने कपड़े पहने बैठा हुआ है और उसका झोला भी काफी पुराना और फटा हुआ था।

मुल्ला नसरुद्दीन उस आदमी के पास गए और बोले, “भाई, यह झोला किस काम का है? यह तो बिल्कुल बेकार लग रहा है।”गरीब आदमी मुस्कुराते हुए बोला, “जनाब, यह झोला मेरी पूरी दुनिया है। इसमें मेरे सारे खजाने हैं।”

मुल्ला नसरुद्दीन ने हैरानी से पूछा, “खजाना? इस फटे-पुराने झोले में क्या खजाना हो सकता है?”गरीब आदमी ने झोला खोलते हुए कहा, “देखिए, इसमें मेरी मेहनत की रोटी है, मेरे सपने हैं, और सबसे बड़ी बात, मेरे पास जो थोड़ा-बहुत है, मैं उससे संतुष्ट हूं। यही मेरी सबसे बड़ी दौलत है।”

मुल्ला नसरुद्दीन ने उसकी बात सुनी और मुस्कुराते हुए बोले, “भाई, तुम्हारा यह झोला तो बड़े-बड़े अमीरों की तिजोरी से ज्यादा कीमती है। असली अमीरी दिल की संतुष्टि में होती है, न कि सोने-चांदी में।”इस पर गरीब आदमी ने कहा, “बिल्कुल सही फरमाया आपने, जनाब। जो संतोष से भर जाए, वही सबसे अमीर है।”

मुल्ला नसरुद्दीन ने सिर हिलाया, और मन ही मन सोचा, “यह गरीब आदमी तो असली फकीर है। सच में, यह झोला गरीब का नहीं, एक राजा का झोला है।”उस दिन मुल्ला नसरुद्दीन को समझ में आया कि खुश रहने का असली राज संतोष में है, न कि दौलत में।