Frogs That Rode A Snake Story in Hindi
सांप की सवारी करने वाले मेंढक की कहानी
एक बार की बात है, एक तालाब में बहुत सारे मेंढक रहते थे। उनमें एक मेंढक का नाम जलपाक था। जलपाक मेंढकों का राजा था। वह बहुत बुद्धिमान और दयालु था।
एक दिन, तालाब के पास एक बड़ा सा सांप आया। सांप का नाम मंदविष था। मंदविष बूढ़ा और कमजोर हो गया था।
वह आसानी से शिकार नहीं कर पाता था।मंदविष ने सोचा कि मेंढक तो आसान शिकार होंगे। वह तालाब के पास गया और एक पत्थर पर बैठ गया।
तभी एक मेंढक ने उसे देखा। मेंढक ने सांप से पूछा, “चाचा, क्या बात है, आज आप खाने की तलाश नहीं कर रहे हैं। अपने लिए भोजन नहीं जुटाएंगे?”मंदविष ने रोनी सी सूरत बनाकर मेंढक को कहा, “नहीं, बेटा। मैं बहुत बुढ़ा हो गया हूं। मैं अब शिकार नहीं कर पाता। मैं बहुत भूखा हूं। मुझे मरना नहीं चाहिए।”
मेंढक को मंदविष की बात सुनकर बहुत दया आ गई। उसने मंदविष से कहा, “चाचा, मैं आपकी मदद कर सकता हूं। मैं आपको तालाब में भोजन ढूंढने में मदद करूंगा।”मंदविष को मेंढक की बात सुनकर बहुत खुशी हुई। उसने मेंढक से कहा, “धन्यवाद, बेटा।
तुमने मेरी बहुत मदद की।”फिर मेंढक मंदविष की पीठ पर बैठ गया। मंदविष ने मेंढक को अपने गले में पकड़ लिया। फिर वह तालाब में भोजन ढूंढने के लिए निकल पड़ा।मंदविष और मेंढक ने मिलकर बहुत सारा भोजन ढूंढ लिया। मंदविष बहुत खुश था।
उसने मेंढक से कहा, “बेटा, तुमने मेरी बहुत मदद की। तुम बहुत अच्छे हो।”मेंढक भी मंदविष की मदद करके बहुत खुश था। वह मंदविष के साथ तालाब में रहने लगा।धीरे-धीरे मेंढक और मंदविष में बहुत अच्छी दोस्ती हो गई।
वे दोनों साथ में खेलते, खाते और सोते थे।एक दिन, मंदविष ने मेंढक से कहा, “बेटा, मैं अब बहुत बुढ़ा हो गया हूं। मैं अब ज्यादा दिनों तक नहीं रह पाऊंगा।”मेंढक को मंदविष की बात सुनकर बहुत दुख हुआ। उसने मंदविष से कहा, “चाचा, मैं आपके बिना क्या करूंगा?”मंदविष ने मेंढक से कहा, “बेटा, तुम चिंता मत करो।
मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा।”फिर मंदविष ने मेंढक से कहा, “बेटा, मैं एक बात तुमसे कहना चाहता हूं।”मेंढक ने कहा, “जी, चाचा, कहिए।”मंदविष ने कहा, “बेटा, किसी भी शत्रु की बात का जल्दी से भरोसा नहीं करना चाहिए।
इससे खुद की और अपने लोगों की हानि होना निश्चित है।”मेंढक ने कहा, “जी, चाचा, मैं आपकी बात कभी नहीं भूलूंगा।”फिर मंदविष ने अपने प्राण त्याग दिए। मेंढक बहुत दुखी हुआ। वह मंदविष की कब्र पर बैठा रोने लगा।
मेंढक ने मंदविष की बात हमेशा याद रखी। उसने कभी भी किसी शत्रु की बात का जल्दी से भरोसा नहीं किया।
कहानी से सीख:
किसी भी शत्रु की बात का जल्दी से भरोसा नहीं करना चाहिए। इससे खुद की और अपने लोगों की हानि होना निश्चित है।दोस्ती बहुत कीमती होती है। हमें अपने दोस्तों की हमेशा मदद करनी चाहिए।
Moral of the story:
Never trust the words of an enemy easily. It is certain that you will suffer yourself and your people.Friendship is very precious. We should always help our friends.