बिल्ली और चूहा की कहानी में,
एक बार बिल्ली और चूहा एक ही गाँव में रहते थे। बिल्ली बहुत ही स्वाभाविक रूप से शान्त और धीरे-धीरे थी, जबकि चूहा चालाक और चतुर था।
एक दिन, चूहा ने बिल्ली को एक नई खेल खेलने के लिए आमंत्रित किया। उसने बिल्ली को कहा, “हमें एक दौड़ दौड़ने की प्रतियोगिता में भाग लेना चाहिए। जो जीतता है, वह सभी धन का मालिक होगा।”बिल्ली, जो स्वभाव से होशियार नहीं थी, सहम गई, लेकिन चूहा के आमंत्रण को स्वीकार कर लिया। दौड़ शुरू हो गई, लेकिन बिल्ली के लंबे पैर थोड़े ही फिरते थे। चूहा जीत गया और सभी धन का मालिक बन गया।
बिल्ली को यह सब देखकर बहुत दुखी हुआ। वह एक सभ्य तरीके से चूहा के पास गई और कहा, “मुझे इस घटना से कोई असहायता नहीं है।
लेकिन क्या तुम मुझे यह सिखा सकते हो कि होशियारी ही सब कुछ नहीं होती, सही और गलत के बीच भी अहमियत होती है?”चूहा ने इस बात को समझा और उसने बिल्ली को उसके होशियारी और सहज विवेक की महत्वता सिखाई।
इससे बिल्ली ने सीखा कि अक्सर जीतने का आधार धार्मिकता, नेतृत्व, और अच्छाई होता है, न कि केवल चालाकी।
इस कहानी से यह सिख मिलती है कि जीत की सच्ची मान्यता हमेशा उसे समर्थ बनाने वाले गुणों में होती है।