विक्रम और बेताल की कहानी – भिक्षु संतशील की कथा
एक समय की बात है, राजा विक्रमादित्य बेताल को पकड़ने के लिए श्मशान घाट गए। जैसे ही उन्होंने बेताल को पकड़ा और उसे अपने कंधे पर रखा, बेताल ने अपनी आदत के अनुसार एक कहानी सुनानी शुरू कर दी। उसने विक्रम से कहा, “राजन! मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूं। ध्यानपूर्वक सुनो और अंत में उत्तर दो।
अगर तुम सही उत्तर जानते हुए भी चुप रहे, तो तुम्हारा सिर फट जाएगा।”
कथा प्रारंभ
प्राचीन समय में वाराणसी में संतशील नाम का एक भिक्षु रहता था। वह बड़ा ही धर्मात्मा और साधु प्रवृत्ति का था। उसकी ईमानदारी और सच्चाई के कारण लोग उसका बहुत सम्मान करते थे। एक बार संतशील तीर्थ यात्रा पर निकला।
यात्रा के दौरान वह एक राज्य में पहुँचा, जहाँ राजा बहुत न्यायप्रिय और धर्मपरायण था। राजा ने संतशील का खूब आदर-सत्कार किया और उसे अपने महल में ठहराया।एक दिन संतशील ने राजा से पूछा, “महाराज! आप इतने धर्मनिष्ठ हैं, फिर भी आपके राज्य में गरीबी और अपराध क्यों है?”राजा ने उत्तर दिया, “हे भिक्षु! मैं अपने राज्य में सबका भला चाहता हूँ, लेकिन कुछ लोग अपनी आदतों से मजबूर हैं।”
यह सुनकर संतशील ने राजा को सलाह दी कि यदि वह अपनी प्रजा की समस्याओं को सही तरीके से हल करेगा, तो राज्य में सुख-शांति स्थापित हो सकती है। राजा ने संतशील की बात मानी और उसके बताए मार्ग पर चलने लगा।
बेताल का प्रश्न
बेताल ने पूछा, “राजा विक्रम! संतशील की सलाह से राजा ने प्रजा का कल्याण किया, लेकिन यह बताओ कि क्या संतशील की यह सलाह राजा के लिए उचित थी? भिक्षु होने के नाते क्या उसे राजनीति में हस्तक्षेप करना चाहिए था?”विक्रम का उत्तरराजा विक्रम ने उत्तर दिया, “भिक्षु संतशील ने जो सलाह दी, वह पूरी तरह उचित थी।
एक भिक्षु का कर्तव्य है कि वह लोगों को सही राह दिखाए, चाहे वह किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो। यदि उसकी सलाह से किसी का भला होता है, तो उसमें कोई बुराई नहीं है। धर्म और राजनीति दोनों का उद्देश्य लोगों की भलाई करना है।
इसलिए संतशील ने जो किया, वह धर्म के अनुसार था।”यह सुनते ही बेताल हँसा और बोला, “तुमने सही उत्तर दिया, राजन। लेकिन मैंने तुम्हें शर्त के अनुसार बोलने पर मजबूर कर दिया। अब मैं फिर से चला।” इतना कहकर बेताल फिर से पेड़ पर जा लटका।इस प्रकार विक्रम को बार-बार बेताल को पकड़ने का प्रयास करना पड़ा।
शिक्षा:
कहानी हमें सिखाती है कि सच्चाई और सही सलाह किसी भी परिस्थिति में दी जा सकती है, चाहे आप किसी भी भूमिका में हों। धर्म और नैतिकता का पालन सबसे महत्वपूर्ण है।