यहाँ विक्रम और बेताल की कथा में “चार भाइयों” की कहानी का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
कहानी का प्रारंभ:
राजा विक्रमादित्य ने बेताल को कंधे पर उठाया, और बेताल ने कहानी सुनानी शुरू की।एक गांव में एक ब्राह्मण के चार बेटे थे। चारों भाई बहुत प्रतिभाशाली और विद्या के प्रति समर्पित थे। वे चारों ने अलग-अलग गुरुकुलों में शिक्षा प्राप्त की और विशिष्ट विद्या में निपुण हो गए।
चार भाइयों की विद्या:
1. पहले भाई ने एक ऐसी विद्या सीखी, जिससे वह मरे हुए जीव का कंकाल बना सकता था।
2. दूसरे भाई ने विद्या सीखी कि कंकाल पर मांस चढ़ा सकता था।
3. तीसरे भाई ने विद्या प्राप्त की कि मांस वाले शरीर में खून और चमड़ी ला सकता Eyes।
4. चौथे भाई ने विद्या सीखी जिससे वह उस शरीर में प्राण डाल सकता था।कहानी का मुख्य भाग:चारों भाइयों ने अपनी-अपनी विद्या को परखने के लिए जंगल में एक शेर का कंकाल ढूंढा।पहले भाई ने उस कंकाल को तैयार किया।दूसरे भाई ने उसमें मांस चढ़ाया।तीसरे भाई ने उसमें खून और त्वचा दी।चौथे भाई ने उसमें प्राण फूंक दिए।जैसे ही शेर जीवित हुआ, उसने चारों भाइयों पर हमला कर दिया। वे अपनी जान बचाने के लिए भागे।
बेताल का प्रश्न:
बेताल ने पूछा, “इन चारों में सबसे अधिक दोषी कौन था, जिसने अपनी विद्या का उपयोग सबसे अधिक गलत तरीके से किया?”
राजा विक्रमादित्य का उत्तर:
राजा विक्रमादित्य ने उत्तर दिया, “सबसे अधिक दोषी वह चौथा भाई था जिसने शेर में प्राण डाले, क्योंकि अगर वह ऐसा न करता तो शेर जीवित न होता और दूसरों पर हमला न करता।”बेताल विक्रमादित्य की बुद्धिमत्ता से प्रभावित हुआ और फिर से पेड़ पर उड़कर चला गया।
शिक्षा:
कहानी हमें यह सिखाती है कि अपनी विद्या का उपयोग विवेकपूर्वक और सही दिशा में करना चाहिए। गलत इस्तेमाल विनाश का कारण बन सकता है।