विक्रम और बेताल की कहानी: किसका पुण्य बड़ा?
एक बार राजा विक्रमादित्य ने बेताल को पकड़कर अपनी पीठ पर लादा और श्मशान की ओर चल दिए। रास्ते में बेताल ने राजा को एक कहानी सुनानी शुरू की और एक सवाल पूछा।
कहानी:
किसी नगर में एक राजा था। उसके राज्य में दो व्यक्ति बहुत प्रसिद्ध थे – एक था दानी ब्राह्मण, जो अपनी संपत्ति से जरूरतमंदों को दान करता था। दूसरा था एक तपस्वी, जो जंगल में तपस्या करता और भगवान की साधना में लीन रहता।ब्राह्मण अपनी संपत्ति का दान करके गरीबों की मदद करता था, जबकि तपस्वी अपनी कठोर तपस्या से भगवान की उपासना करता था।
एक दिन दोनों की मृत्यु हो गई। उनके पुण्य का निर्णय करने के लिए स्वर्ग के देवता चिंतित हो गए।देवताओं ने चर्चा की कि ब्राह्मण ने लोगों की मदद की और समाज का भला किया, जबकि तपस्वी ने स्वयं के मोक्ष के लिए तपस्या की। दोनों का पुण्य तुलनीय था, लेकिन देवताओं को निर्णय करना कठिन हो गया।सवाल:अब बेताल ने राजा विक्रम से पूछा, “हे राजा, बताओ कि ब्राह्मण और तपस्वी में से किसका पुण्य बड़ा है?”
राजा का उत्तर:
राजा विक्रमादित्य ने उत्तर दिया, “ब्राह्मण का पुण्य बड़ा है, क्योंकि उसने अपनी संपत्ति से दूसरों की भलाई की और उनके जीवन को सुधारने का प्रयास किया। जबकि तपस्वी ने केवल अपने मोक्ष के लिए तपस्या की, जो एक व्यक्तिगत लाभ है। समाज की भलाई के लिए किया गया कार्य हमेशा व्यक्तिगत लाभ से बड़ा होता है।”
बेताल राजा के उत्तर से संतुष्ट हुआ लेकिन फिर से उड़कर पेड़ पर चला गया।इस प्रकार राजा विक्रमादित्य की समझ और न्यायप्रियता ने फिर से एक सवाल का सही उत्तर दिया।