विक्रम और बेताल की प्रारंभिक कहानी
एक समय की बात है, उज्जैन नगर के प्रतापी राजा विक्रमादित्य अपनी बुद्धिमत्ता, साहस और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी ख्याति चारों दिशाओं में फैली हुई थी। राजा विक्रमादित्य ने अपनी प्रजा की भलाई के लिए हमेशा तत्पर रहते थे।
एक दिन, उनके दरबार में एक तपस्वी आया। उसने राजा से कहा, “हे राजन! मैं एक यज्ञ कर रहा हूं और मुझे इसके लिए आपकी सहायता की आवश्यकता है। यदि आप इस कार्य को पूरा कर देंगे, तो आपका नाम इतिहास में अमर हो जाएगा।”राजा विक्रमादित्य ने तपस्वी की बात मान ली और यज्ञ में सहायता करने का वचन दिया।
तपस्वी ने राजा से कहा, “आपको श्मशान घाट में जाकर एक पीपल के पेड़ पर लटके हुए बेताल को पकड़कर लाना होगा। वह बेताल एक पिशाच है, जो कहानियां सुनाता है। उसे पकड़कर मेरे पास लाने के बाद ही यज्ञ पूर्ण होगा।”राजा विक्रमादित्य ने साहसपूर्वक यह चुनौती स्वीकार कर ली।
वे अपनी तलवार लेकर घने जंगल की ओर निकल पड़े। जंगल में चलते-चलते वे श्मशान घाट पहुंचे, जहां पीपल के पेड़ पर बेताल लटका हुआ था। बेताल ने विक्रम से कहा, “हे राजन! यदि तुम मुझे यहां से ले जाना चाहते हो, तो मेरी एक शर्त है। रास्ते में यदि तुमने कुछ भी बोला, तो मैं वापस इसी पेड़ पर आ जाऊंगा।”
राजा विक्रमादित्य ने बेताल को अपने कंधे पर उठाया और चुपचाप चलने लगे। तभी बेताल ने राजा का ध्यान भटकाने के लिए एक कहानी सुनानी शुरू की। इसी प्रकार राजा विक्रम और बेताल के बीच कहानियों का सिलसिला शुरू हुआ, जिसमें हर कहानी के अंत में बेताल एक प्रश्न पूछता।
यदि राजा सही उत्तर देते, तो बेताल वापस पेड़ पर चला जाता।इस प्रकार राजा विक्रमादित्य और बेताल की कहानियों की यह रोमांचक यात्रा शुरू हुई, जो बुद्धि, तर्क और साहस का अद्भुत संगम है।