Bansuri Wala 

बांसुरी वाला

बाँसुरी वाला
— एक कविता

हरी-हरी वादियों में, गूंजती मीठी तान,
सूरज की किरणों संग, बाँसुरी का मधुर गान।
साँसों की सरगम से, जीवन के राग सजाता,
हर दिल के कोने में, खुशी का दीप जलाता।

उसकी बाँसुरी में, जादू का कोई राज़,
हर सुर के संग बहते, सपनों के अनगिन ताज।
आसमान छूती धुनें, धरती को झूमाती,
हर पत्ता, हर फूल, मुस्कान में खो जाती।

न तन का भान है उसे, न धन का मोह,
सिर्फ सुरों में बसता, उसका अनूठा स्रोत।
भीड़ में अकेला सा, पर सबसे जुड़ा हुआ,
बाँसुरी वाला सिखा जाता, सादगी का सबक नया।

उसकी तान में छिपा, प्रेम और शांति का भेद,
हर दिल को सिखा दे, कैसे मिटे हर द्वेष।
उसकी धुन में बहें, सागर के लहरों जैसे,
जीवन के रंग भर दे, बाँसुरी की तान से।


यह कविता बाँसुरी वाले की सरलता और उसकी धुनों के जीवन पर प्रभाव को व्यक्त करती है।