इल्ली उल्ला / Eilli Ulla

इल्ली उल्ला / Eilli Ulla

इल्ली और उल्ला

पत्तों के बीच छुपी थी इल्ली,
हरी-हरी, नरम, छोटी सी प्यारी।
दिनभर चुपचाप चबाती पत्ते,
खुद में खोई, जैसे हो सपने बुनते।

उधर डाल पर बैठा उल्ला,
चमकती आँखों वाला वो पंछी चला।
रात के सन्नाटे का साथी,
जैसे चाँद संग बातें करता मथ्था।

इल्ली ने पूछा, “ओ उल्ला भाई,
क्यों रातों को घूमते हो हर जगह उड़ाई?”
उल्ला हँसकर बोला, “ये मेरी पहचान है,
चाँदनी मेरी दोस्त, रात मेरी जान है।”

इल्ली ने सोचा, “मैं भी उड़ूँगी,
फूलों की दुनिया में जाकर झूलूँगी।
जब बनूँगी तितली, रंग-बिरंगी,
तो देखना, मैं भी बन जाऊँगी धुरी अनूठी।”

उल्ला ने कहा, “धैर्य रखो,
हर चीज़ का समय होता, ये समझो।
तुम्हारे भीतर छुपी है ताकत,
बस अपने सफर का करो स्वागत।”

इस तरह इल्ली ने सीख लिया,
कि हर हाल में सपने देखना चाहिए।
और उल्ला ने दिखा दिया,
कि रात में भी रोशनी खोजना चाहिए।

दोनों ने मिलकर समय बिताया,
जीवन का अर्थ सिखाया।
इल्ली और उल्ला की ये कहानी,
हर दिल को दे नई निशानी।