गोपाल के गाल
गोपाल के गाल, हैं लाल-लाल,
जैसे खिली हो गुलाब की डाल।
हंसी में झरते मोती से बोल,
जैसे गुनगुनाती हो कोयल की डोल।
खेलता है जब वो आंगन में,
सूरज भी झांकता है सावन में।
छोटी-छोटी शैतानियां प्यारी,
हर नजर में छवि उसकी न्यारी।
दादी की कहानियां सुनते-सुनते,
सपनों में खो जाता है पलकों के नीचे।
मां के आंचल में लिपटा जो सोता,
लगता है चांदनी का उजला कोना।
गोपाल के गाल, हैं लाल-लाल,
जैसे उमंगों की बारिश हर हाल।
भोलेपन से भरा वो मासूम चेहरा,
हर दिल में भर देता है सवेरा।