लकड़ी का घोड़ा
लकड़ी का घोड़ा, झूले वाला,
बचपन का साथी, कितना निराला।
रंग-बिरंगे सपनों से सजा हुआ,
मेरे दिल का कोना इसमें बसा हुआ।
जब मैं चढ़ता, तो लगता सवार,
जैसे मैं राजा, संग है दरबार।
पल भर में उड़ जाऊं बादलों के पार,
इस घोड़े संग, बने दुनिया मेरी यार।
ना चाबुक चाहिए, ना लगाम की बात,
यह दौड़े मेरी सोच से, हर एक रात।
पढ़ाई के बस्ते को भूल जाता मैं,
इस घोड़े पर दुनिया नाप आता मैं।
माँ की गोद से जब दूर होता,
लकड़ी का घोड़ा मुझसे बात करता।
खिलखिलाती मेरी हंसी, उसकी चाल पर,
बचपन के गीत गाता, हर सवाल पर।
अब घोड़ा कहीं कोने में पड़ा है,
धूल भरी यादों में जैसे अड़ा है।
पर दिल के भीतर अब भी वो जीता,
लकड़ी का घोड़ा, मेरा साथी अनमिटा।
बचपन के खेल, सपनों की बात,
लकड़ी के घोड़े में है वो सौगात।
जो दौड़ाता है अब भी ख्यालों को,
जो जोड़ता है हर बीते सालों को।