मेरी रेल
— एक कविता
धक-धक करती पटरियों पर, दौड़ती मेरी रेल,
सपनों की दुनिया ले चले, हर मौसम में खेल।
सूरज संग जगती, चाँद संग सोती,
हर मोड़ पर नई कहानी बुनती और रोती।
धुआँ उगलती कभी, तो कभी बिजली सी तेज,
गाँव-शहर सबको जोड़े, करती सबके दिल सहेज।
खिड़की से झाँकूं तो दिखे, पेड़, नदी और खेत,
जैसे जीवन का पन्ना, हर दृश्य कहे नई रीत।
स्टेशन की भीड़ में, सिटी जब बजती,
बच्चे, बूढ़े, सबकी आँखें चमकती।
दूर देश तक पहुँचाती, नई-नई मंज़िलें,
मेरी रेल सुनाती, सपनों की महफ़िलें।
खिड़की पर थप-थप करती, हवाओं की बातें,
हर सफर में मिलते, अनजाने चेहरे और साथें।
टिक-टिक करती घड़ी, मंज़िल का इंतज़ार,
रेल की गूंज में छुपा, जीवन का सार।
कभी धीमी, कभी तेज, यूँ ही चलती जाए,
मेरी रेल संग, हर दिल की कहानी गाए।
जोड़े रिश्तों की डोर, मिटाए हर मुश्किल,
मेरी रेल है प्यारी, सपनों का है ये काफ़िला।
यह कविता रेल के सफर और उससे जुड़े भावनात्मक पहलुओं को खूबसूरती से उकेरती है।