रेल चली
चु-चु करती रेल चली,
धुआँ उड़ाती तेज चली।
पटरियों पर सरपट दौड़ी,
जैसे नदिया लहरों में हो झूम चली।
सीटी मारी, शोर मचाया,
हर स्टेशन पर रुककर बतलाया।
सवारियों का कारवाँ संग लाती,
खुशियों की झोली भरकर जाती।
खिड़की से झाँके खेत-खलिहान,
हरे-भरे पेड़ों का प्यारा गान।
नदी-पहाड़, पुल-पगडंडी,
रेल की यात्रा, लगे अनूठी।
डिब्बों में बसा है जग सारा,
कहीं हँसी, कहीं गम का नज़ारा।
बैठे हैं संग अलग-अलग चेहरे,
सबको मंज़िल की आस घनेरे।
रात में तारे संग बातें करती,
दिन में सूरज के संग चलती।
रेल, तुम जोड़ती हर दिल को,
गाँव-शहर और सब तटों को।
चलते रहो, यूँ ही संग-संग,
हर सफर में भर दो रंग।
रेल चली, जीवन की सीख सिखाई,
चलते रहना, मंज़िल न भूल पाई।